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वायु सुतः          दिगंबर श्री हनुमान मंदिर, सिध्दाबरी, हिमाचल प्रदेश


जी के कोशिक

सिध्दाबरी

Pujya Gurudev Swami Chinmayanandaji सिध्दाबरी, सुंदर कांगड़ा घाटी में हिमालय की धौलाधार पर्वतमाला की तलहटी में स्थित है। एक तरफ नगरकोट की देवी का वास है, और दूसरी तरफ उसके चामुंडी देवी है। अति प्राचीन काल से, सिध्दाबरी ऋषियों और संतों का निवास रहा है। यहां तक कि श्रीमद भागवत में भी इसका विवरण है। स्वामी चिन्मयानंदा जी ने ज्ञान की अकादमी की स्थापना यहाँ सिध्दाबरी में की थी, और उसका नाम भगवान कृष्ण के गुरु ऋषि संदीपन पर रखा।

स्वामी चिन्मयानंदा जी एवं संदीपन

सिध्दाबरी की प्राकृतिक सुंदरता में, पुज्य गुरु स्वामी चिन्मयानंदा जी ने सिध्दाबरी के पहाड़ी लोगों के लिए एक राम मंदिर निर्माण के बारे में सोचा। लेकिन यहाँ वायु वेग बहुत तेज था, और हवा सब कुछ रोष के साथ उखाड़ ले जाती थी। तब स्थानीय लोगों ने कहा कि सिध्दाबरी में पवन इतनी तेज है कि कोई भी पेड़ यहाँ विकसित नहीं हो पायेगा। तब पुज्य गुरु स्वामी चिन्मयानंदा जी ने कहा कि हम यहां दिगंबर मंदिर में पवनपुत्र हनुमान की स्थापना करेगें। उनकी कृपा से पवन भगवान मधुर होगें और आश्रम में पेड़ भी उग पायेगें तथा यह हमें सक्षम बनायेगा कि हम पहाड़ी लोगों के लिए एक राम मंदिर बनाने का संकल्प पूर्ण कर सके।

दिगंबर मंदिर

श्री हनुमान, दिगंबर मंदिर, सिध्दाबरी, हिमाचल प्रदेश,Hanuman of Digambara Temple, Sidhabari, Himachal Pradesh सिध्दाबरी में इस प्रकार दिगंबर मंदिर में पवनपुत्र हनुमान की स्थापना हुई थी। संदीपन के शांतिपूर्ण माहौल में, हनुमानजी की बाईस फीट ऊंची मूर्ति, स्वास्थ्य और शक्ति के देवता, बहु तारांकित आकाश के नीचे, अपने प्रिय पिता पवन भगवान को गले लगाने के लिए खड़े हैं। पवनपुत्र हनुमान जी की मूर्ति को आठ पक्षों के आसन पर रख दिया गया है। आसन पर आठ दोहे, हर तरफ एक दोहा खुदा है। आठों दोहे रामायण से लिये गये हैं, तथा वो निम्नलिखित हैं।

प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ज्ञानघन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर-चाप धर॥

राम नाम मनिदीप धरु जींह देहरीं द्वार।
तुलसी भीतर बाहेरे हुँ जौं चाहीस उजियार॥

राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार।
सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें विमल विचार॥

हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥

निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदय धीर धरु जरे निसाचर जानु॥

जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि।
तासु दूत मैं जा कीर हरि आनेहु प्रिय नारि॥

प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखि हैं तव अपराध विसारि॥

मोह मूल बहु सूल प्रद त्यागहु तप अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान॥

मूर्ति बनाने के दौरान, संचित अशुद्धियों से मूर्ति को शुद्ध करने के लिए, 10 अक्टूबर 1982 को मस्तक अभिषेकं आयोजित किया गया। यह अद्भुत नजारा है कि पूज्य गुरुदेव स्वामी जी की ठीक भविष्यवाणी के अनुरूप, पवनपुत्र हनुमानजी की कृपा के साथ, आश्रम पूरी तरह से पेड़ों और जंगल से घिरा हुआ है। यह भी नोट करने योग्य है कि यह आश्रम स्वामी चिन्मयानंदा की अंतिम विश्राम जगह है।

 

 

अनुभव
दिगंबर मंदिर में पवनपुत्र हनुमानजी के दर्शन करके, अपने मन की शांति बढ़ाएँ और अपने अहंकार को मिटाएँ ।
प्रकाशन [जुलाई 2014]

 

 

~ सियावर रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय । ~

॥ तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

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