home-vayusutha: मन्दिरों रचना प्रतिपुष्टि
boat

वायु सुतः          वैष्णव तेजस: नमोस्तुते


वैष्णव तेजस: नमोस्तुते

रचयिता:   श्री हरि सुन्दर

वाल्मिकी रामायण का सुन्दर काण्ड के प्रथम श्लोक की व्याख्यात्मक निबंध में बताया गया है कि जब अज्ञान (अविवेक) और अहंकार (जिसे रावण द्वारा दर्शाया गया है) आत्मा (जीव, जिसका प्रतिनिधित्व श्री सीता द्वारा किया जाता है) का अपहरण कर लेते हैं, तो उसे गुरु (हनुमान) के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, जो आत्मा को बचाने के लिए पूर्व आचार्यों द्वारा दिखाए गए मार्ग का अनुसरण करते हैं।

जब एक आत्मा को ऐसा गुरु मिल जाता है जो अज्ञानता को दूर करता है और ज्ञान प्रदान करता है, तो उसके चारों ओर का अंधकार मिट जाता है और आध्यात्मिक अनुभव गहरा हो जाता है।

आदि कवि (वाल्मीकि) ने हनुमान के साथ श्री सीता देवी की पहली मुलाकात को उगते सूरज को देखने के समान बताया है। श्लोक कहता है:

ददर्श पिङ्गाधिपतेरमात्यं वातत्मजं सूर्यमिवोदयास्थम् (सुंदर कांड 31:21)

इसका तात्पर्य है कि अंधकार मिट होने लगता है। श्रीसीता ने हनुमान को एक उज्ज्वल प्रकाश के रूप में देखा जो उन्हें उनकी पीड़ा से राहत दिलाने में सक्षम कर सक्ता है।

गुरु तेजस्वी के रूप में

रावण को गुरु (हनुमान) कैसे दिखाई देते हैं? पाठ में उन्हें महा तेजस्वी के रूप में वर्णित किया गया है - विष्णु की दिव्य चमक का अवतार:

किं वा परं ब्रह्मा परं त्वसह्यं सर्वस्य बीजं जगतोऽस्य विष्णुः।
यद्देवदेवस्य पञ्च तेजस्तदेव तेजः कपिरेश वीरः॥ (सुन्दर काण्ड 52:32)

जब हम गुरु परंपरा का पाठ करते हैं, तो हम नारायण को प्रथम गुरु के रूप में पहचानते हुए "नारायण, वशिष्ठ..." से शुरु करते हैं। इसी प्रकार, हनुमान ने रावण को स्वयं एक आदि गुरु, नारायण के प्रतिबिंब के रूप में दिखाई दिया। मगर, रावण के अहंकार और अज्ञानता के कारण, रावण ने हनुमान की दिव्य उपस्थिति को गलत समझा। उन्होंने उसे एक खतरे के रूप में देखा जिसे खतम करना अवश्यक था ।

विद्या मे वैष्णव तेज ….. (सुंदर कांड 52:33)

इससे संकेत मिलता है कि रावण ने हनुमान को ऐसा व्यक्ति समझा जो उसे नष्ट करने के लिये आया हैं।

रावण की अज्ञानता

रावण के कार्यों में अज्ञानता की पराकाष्ठा झलकती थी। क्या कोई सूर्य को उसके तेज के लिए दंडित कर सकता है? इसी तरह, क्या कोई सूर्य की किरणों में आग लगा सकता है? रावण के अहंकार ने उसे अंधा कर दिया, जिसके कारण उसने हनुमान की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया - यह कार्य सूर्य की किरणों की सुंदरता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने जैसा मूर्खतापूर्ण कार्य था।

यह घटना इस बात का प्रतीक है कि अज्ञानता ज्ञान को बांधने का प्रयास कर रही है, और अहंकार ईश्वरीय तेज को दबाने का प्रयास कर रहा है।

मगर, ज्ञान में स्वाभाविक रूप से ऐसे शक्ति होती है जिसे वो बंधनों को पार कर सक्ता है। विष्णु की दिव्य तेज के अवतार हनुमान ने इन बंधनों को तोड़ दिया और आत्म-संयम तथा आंतरिक प्रकाश की शक्ति का प्रदर्शन किया।

गुरु से प्रार्थना

आइये इस कहानी से हमें अपने गुरु से प्रार्थना करने की प्रेरणा मिले:

“हे मेरे पूज्य गुरु, वैष्णव तेजः! मुझे अज्ञान के बंधनों से मुक्त करें!”

(टिप्पणि/नोट: ये श्लोक सुन्दरकाण्ड से लिए गए हैं तथा अन्ना ने इनकी व्याख्या की है, जिसे रामकृष्ण मठ, मायलापुर ने प्रकाशित किया है।)

 

 

~ सियावर रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय । ~

॥ तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

+