यह एक अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आंध्र प्रदेश में कोई भी ऐसा गांव नहीं है जहाँ हनुमान मंदिर न हो, विशेष रूप से विजयनगर साम्राज्य शासनकाल के बाद वर्तमान आंध्र प्रदेश भर में अपने पंख फैलाये। यहाँ हनुमानजी, हनुमानथुदु या अंजनेयुलु के रूप में अधिक लोकप्रिय हैं।
विजयनगर साम्राज्य सालुवा वंश के शासन के अधीन था सालुवा के पराजित होने के बाद, तुलुवा ने साम्राज्य की बागडोर संभाली थी। १५०९ के दौरान,
कृष्णदेवराय विजयनगर साम्राज्य के सम्राट बने। लेकिन तुलुवा साम्राज्य के दौरान तथा सालवा शासन के दौरान, श्री व्यासतीर्थ, विष्णु भक्त और हनुमंत
उपासक ही राजाओं के गुरु थे। श्री व्यासतीर्थ जी ने ही हनुमंत भक्ति और आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार किया था। उन्होंने ही कई हनुमान मूर्तियां की
स्थापना की. और निर्देशानुसार मंदिरों का निर्माण करवाया था।
श्री व्यासतीर्थ ने अपने शिष्यों के साथ नंगे पैरों से दौरा किया था, वे इंद्र कीलाद्रि आराम के लिये रुके थे, वहाँ भगवान मारुति वानर के रूप में प्रकट हुए तथा उन्होंने श्री व्यासतीर्थ को उठाकर अपने पीछे आने का संकेत दिया। सबने वैसा ही किया और पहाड़ों तथा जंगलों को पार करके वर्तमान के मचवरं स्थान पर पहुंच गये। वानर रूप में भगवान मारुति ने उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण करने के लिए कहा तथा मूर्ति के दोनों तरफ शंख और चक्र के साथ हनुमानजी की मूर्ति स्थापित करने के लिए श्री व्यासतीर्थ को निर्देश दिया। निर्देशन करने के बाद भगवान मारुति रामनाम का जाप करते हुये उत्तरी दिशा की ओर रवाना हुए और तदोपरान्त गायब हो गये। भगवान मारुति द्वारा निर्देश के रूप में, श्री व्यासतीर्थ ने मंदिर निर्माण की पहल की और अन्य गांव को चले गए।
विजयनगर साम्राज्य के गिर जाने के बाद, सत्ता दूसरों के हाथों में चले जाने पर कई मंदिरों को विध्वंस कर दिया गया था और श्री व्यासतीर्थ द्वारा
निर्मित कई हनुमान मंदिर भी बर्बाद कर दिये गए थे। एक सौ पचास साल पहले, एक ठेकेदार श्री दुन्ना वीरास्वामी नायडू ने एलुरु-विजयवाड़ा सड़क का
निर्माण करवा रहा था। उसी समय के दौरान भगवान हनुमान ने उन्हें सपने में एक दिव्य दिशा दी कि एक खास जगह से मूर्ति की प्राप्ति के लिए खुदाई
करो। श्री नायडू ने काम की खुदाई के लिए अपने मजदूरों के साथ, अपने सपने में भगवान हनुमान द्वारा सांकेतिक स्थल के लिए रवाना हुआ। एक छोटी
सी उत्कृष्ट दिव्य मूर्ति सिंधूरा सजावट के साथ प्राप्त करने के लिये उसी जगह खुदाई की गई थी, जहां एक पीपल का पेड़ मौजूद है। उन्होंने भक्तों के
दर्शनों को सुविधाजनक बनाने के लिए, तब वहाँ एक फूस के झोंपड़े की व्यवस्था की थी। मंदिर निर्माण से पहले पीपल के पेड़ ने ही उस जगह को सुखद
आश्रय प्रदान किया था और वो पेड़ अभी भी जिंदा है, और देखा जा सकता है।
तब से इस क्षैत्र के प्रभु हनुमान अपने आशीर्वाद से भक्तों की इच्छाओं को पूरा करते आ रहे हैं।
श्री दासहनुमान की मूर्ति दो से तीन फुट लम्बी और एक अर्द्ध शिला में है। श्री दासहनुमान श्री राम के सामने घुटने मुड़े के यहाँ एक दासा के रूप में देखा
जाता है। उनके दोनों हाथ अपने भगवान के लिए नमस्कार मुद्रा में हथेलियों को साथ जोड़कर बैठे हैं। उनके सुवर्ण कुंडल चमकीले और आकार में बड़े हैं।
वो अपने हाथों, वक्ष-स्थल और पैरों में सुंदर गहने पहने हुये हैं। उनका यज्ञोपवीत तीन किस्मों के धागो में चमकता हुआ देखाई देता है। उनका पटका
धीमी गति से हवा में लहरा रहा है। श्री व्यासराज की खासियत है, कि प्रतिष्ठा के रूप में भगवान हनुमान की पूंछ सिर से ऊपर उठी हुई तथा जिसके
आखिर में एक घंटी बंधी है।
यह प्राचीन स्थल किसी मानक प्रपत्र पर अंकित नहीं है, लेकिन केवल बड़ों द्वारा पुराने दिनों से बताया जा रहा है। यह मंदिर आंध्र प्रदेश सरकार की बंदोबस्ती विभाग के अधीन है।
इस मंदिर में मुख्य त्योहार धनुर महीने और हनुमान जयंती मनाये जातें हैं। पान-पूजा भी बड़ी श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। विशेषकर मंगलवार को विजयवाड़ा से तथा विजयवाड़ा के आस-पास से दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है। मंदिर विजयवाड़ा के केंद्रीय बस स्टैंड से 6 किमी दूर है, और विजयवाड़ा रेलवे स्टेशन से 5 किमी दूर स्थित है। कई श्रद्धालुओं ने भगवान हनुमान की प्रेरणा से इस क्षैत्र के श्री दसा हनुमान की प्रशंसा में, एक पंचविमशति सहित कई श्लोकों की रचना की थी।
मचवरावासा सतकोटी मनमतविलासा ।
केसरीपुत्रः हनुमन्ता कीर्तिमंता ॥