हिरणकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान में अखंड विश्वास रखने वाला था। उसको तनिक भी संदेह नहीं था, कि परब्रह्मा का हर जगह अस्तितव है। उनको विश्वास था, कि संसार की हर चीज का अस्तितव भगवान के दवारा ही है। हालांकि उनके पिता का मत बिलकुल विपरीत था। जब हिरणकश्यप ने उन्हें परब्रह्मा के अस्तितव को साबित करने के लिये बोला, तो प्रहलाद ने कहा कि भगवान कण-कण में मौजूद है। ये सुनते ही हिरणकश्यप को क्रोध आ गया और पुछा कि भगवान खम्बे में है। प्रहलाद ने उतर दिया कि खम्बे में ही नहीं, अपितु हिरणकश्यप द्वारा उचारित हर शब्द में है, तथा हर उन उचारित शब्दों की ध्वनि में है। इससे क्रोधित होकर और प्रहलाद को गलत साबित करने के लिये, हिरणकश्यप ने खम्बे पर गद्धा से तोड़ने के लिये प्रहार किया। भगवान विष्नु नरसिंह रूप में अवतरित हो गये (नर+सिंह=आधा नर और आधा सिंह)। और खम्बे से बाहर आकर हिरणकश्यप राक्षस का वध कर डाला।
विष्नु का नरसिंह अवतार उग्र रूप है, यह परमेश्वर के सच्चे और वफ़ादार अनुयायियों को हिरणकश्यप जैसे [बुरी ताकतों का प्रतिनिधित्व] के हाथों कष्टों और दुखों से निवारण के लिये लिया था। इसलिए अधर्मा शक्तियों का विनाश करने के लिए भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। नरसिंह के बाद से एक उग्र रूप में इसे उपयुक्त माना गया कि आम मनुष्यों द्वारा उनकी विनम्र स्वरूप में पूजा की जाये। नरसिंह भगवान विनम्र स्वरूप में तथा उनके साथ लक्ष्मी जी - लक्ष्मीनरसिम्हा कहलाई जाती हैं।
योग के रूप में भी वो विनम्र स्वरूप में हैं, तभी उनको योगनरसिंह कहा जाता है। सोलिङ्गर में वो योग रूप में जोकि सही नाम सोज़ा-सिंगपुरम का एक भ्रष्ट संस्करण है। यह जगह तमिलनाडु में तिरुत्तनी से तीस कि.मी. की दूरी पर है। शुरू से यह स्थान कदिकाचलम नाम से जाना जाता था। यह माना जाता है कि मनुष्य अगर २४ मिनट का ध्यान / समाधि लगाये, तो भगवान नरसिंह के इस निवास पर वह निश्चित मुक्ति पायेगा।
भगवान का यह मन्दिर ४०० फीट ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। मन्दिर का मुख्य दवार उत्तर दिशा में है। भगवान पूर्व दिशा में मुख किये हुये, भक्ति और विश्वास के साथ वहां जाने वाले सभी लोगों को, अपने सौम्य के साथ आशीर्वाद देते हुये दिखाई देते हैं। यहाँ उनकी पत्नी का नाम अम्रुतवल्लि तायार [माता] है।
इस पहाड़ी की चोटी से नीचे उतरने के बाद, कुछ दूर चलने पर एक और बहुत छोटी पहाड़ी है। इसकी ऊँचाई लगभग आधी है। इस पहाड़ी की चोटी पर योग हनुमान का मन्दिर है। इसका भी मुख्य दवार उत्तर दिशा में है। भगवान योग हनुमान के मुख्य मंदिर के द्वार पश्चिम दिशा की ओर है। भगवान हनुमान अपने योग स्वरूप में, पश्चिम दिशा में दुसरी पहाड़ी की ओर भगवान योगनरसिंह को देख रहें हैं। योग हनुमान की एक और भिन्नता है कि यहाँ उनके चार हाथ है जोकि उनका चतुर्भुज रूप है। वो शंख और चक्र (सुदर्शन) धारण किये हुये हैं जोकि कहा जाता है कि भगवान योगनरसिंह ने उन्हें प्रदान किया था। योग हनुमान के मन्दिर को दीवार के सामने में छेद के माध्यम से भगवान योग नरसिंह का मंदिर गोपुरम [शिखर] देख सकते हैं। मंदिर टैंक (पुशकरनी) ‘हनु्मान तीरथ’ के नाम से जाना जाता है।
योग नरसिंह के लिए अन्य स्थानों पर मंदिर रहे हैं, लेकिन सोलिङगर ही केवल एक ऐसा स्थान है, कि जहाँ भगवान योगहनुमान को योगासन में देखा जा सकता है। वो न केवल एक योगमुर्ति है, परन्तु उन्होंने अहिंसा धर्म की भी स्थापना की। मदुरै में राजा इन्दिरथुमन का शासन था और वो शिकार का शोकीन था। एक दिन हिरण का पीछा किया जब तक हिरण ने सोज़ासिंगपुरम के जंगल में प्रवेश किया। जब हिरण पहाड़ी पर पहुँचा, जहां अब योगहनुमान का मंदिर स्थित है, वहाँ हिरण-ज्योति स्वरूप में परिवर्तित हो गया और तिरोहित हो गया।
इस आश्चर्य को देखकर, राजा ने ज्योति के आगे श्रद्धा से नमन किया और तब से अहिंसा का मार्ग अपनाया। अहिंसा के साथ उसने बुरी ताकत कुम्बोथरन का विनाश किया और सोज़ासिंगपुरम के लोगों को शांती दिलाई। यह कहा जाता है कि भगवान योग नरसिंह की इच्छा के अनुसार, राजा इन्दिरथुमन को अहिंसा के रास्ते पर डालने के लिये, भगवान योगहनुमान ने एक दृश्य के साथ ज्योति का रूप लिया था।
किसी भी भगवान की, योग नरसिंह या योग हनुमान की उत्सव-मुर्तियाँ नहीं हैं। सभी उत्सव भगवान भक्तवतचलम मन्दिर में मनाये जाते हैं, जोकि सोज़ासिंगपुरम शहर के मध्य में है और पहाड़ी शिख्ररों से वो तकरीबन दो किलोमीटर की दूरी पर है। इस विशाल एवं भव्य मन्दिर का निर्माण नायक शासनकाल में हुआ। इसमें बड़े आंगन और उँचे मंडप हैं।
ये विश्वास किया जाता है, कि जो कोई भी, उनकी इस मन्दिर में भक्तिभाव से पुजा करता है, भगवान योगहनुमान मस्तिष्क से अस्वस्थ व्यक्तियों को ठीक कर देतें हैं। यहाँ पवित्र हनुमान तीर्थ में स्नानोपरान्त अस्वस्थ व्यक्ति को भगवान योगहनुमान की पुजा-अर्चना करनी होती है।