विश्वरुप श्री हनुमानजी का मंदिर, नेरूल, नवी मुंबई

वि जी शुब्रमनियम

 

 

नेरूल, नवी मुंबई
दक्षिण भारतीय प्रशिक्षण संस्थान के एक ट्रस्टी ने कहा था कि देश के मुख्य विश्वविद्यालों एवं प्रशिक्षण संस्थानों ने अपने परिसर में बड़ी मुर्तियों से ही प्ररेणा ली है। प्रशिक्षण परिसर में भगवान हनुमानजी की मुर्ति स्थापना, एक अच्छा सोचा हुआ प्रस्ताव था जिसमें नेरूल की कल्पना की गई। तथा यह विचार किया गया, कि भगवान हनुमानजी के इलावा कोई और दुसरा होई नहीं सकता जो आज के नोजवानों का प्ररेणा स्रोत बन सके।


हमारे पुराणों में भगवान हनुमानजी एक मुख्य देवता हैं। चाहे हम उन्हें अंजनैया, हनुमान या बजरंग बली से बुलायें। सारे विश्व में लाखों लोग दुख के समय में शान्ति, विश्व का सामना करने के लिये साहस, असंभव को कर पाने की लगन, हनुमानजी से ही पातें हैं।


देश में ग्रेनाइट की सबसे बड़ी हनुमानजी की मुर्ति
तैंतीस फीट विश्वरुप हनुमानजी की मुर्ति खड़ी मुद्रा में है। जोकि विशेष ग्रेनाइट पत्थर की एक ही शिला से निर्मित है। इसका निर्माण शिल्प-शास्त्र के अनुसार, कांची मठ के शिल्प-कलामनी म.मुथ्तया सतपथी चैन्नई के प्रख्यात शिल्पी के देख-रेख में हुआ है, जिन्हें ग्रेनाइट पत्थर से मुर्तियाँ बनाने की दक्षता प्राप्त है। इसके निर्माण में एक साल का समय लगा और इसका वज़न पचप्पन टन है।


हनुमानजी की मुर्ति
परेड हनुमान मंदिर, सागर, मध्य प्रदेश,PARAD SRI HANUMAN MANDIR, SAGAR, MADHYA PRADESH
हनुमानजी की मुर्ति का निर्माण चैन्नई के पास हुआ था और इसे सड़क दवारा ले जाया गय़ा। पुजा मुद्रा मे हाथ जोड़े हुए और ध्यान में आखें बंद किये हुए, हनुमानजी की खड़ी मुर्ति कमलासन पर विराजित है। उन्होने कानो में कुढंल, बाहों में केरूयहा, हाथों मे तीन कड़े, और कमल समान पेरों मे पायजेब पहने हुए हैं। उनकी पूंछ जमीन पर विश्राम करते हुए, सर्वकलाओं में संपन, सर्वश्रेष्ठ संपूर्ण दिखते हैं। इस परिसर मे पढ़ रहे आज के युवाओं के लिये इनके इलावा कौन उदाहरण हो सकता है।

इस महान शिल्पकारी के दर्शन करके, भगवान हनुमानजी का शांत स्वरूप, पीछे पर्वतों की श्रंखलाएँ और हरियाली, हमें आत्म विशवास एवं विनम्रता से भर देतें हैं।

हाल की रचनाएँ
इस परिसर मे, हाल ही में, भगवान राम के मंदिर का निर्माण हुआ है। भगवान हनुमानजी की छाया के लिये एक ऊँचा मंडप का भी निर्माण हुआ है। महा अथिरूद्रम और चाँदी यग्नम २६ जनवरी २००० को संपन्न हुआ था और तैंतीस फीट विश्वरुप हनुमानजी की देश में सबसे ऊँची मुर्ति का अभिषेक, श्री कांची कामाकोटी जगतगुरू श्री जयेन्द्र सरस्वती स्वमीगल, श्री कांची कामाकोटी जगतगुरू श्री विजयेन्द्र सरस्वती शंकराचार्य स्वमीगल ने ९ फरवरी २००० को श्री चन्द्राशेखरेंद्रा सरस्वती विद्यापुरम में हुआ था।

महारूद्रा महायग्नम और हनुमान जयंती २५ से २८ दिसंबर २०००, प्रशिक्षण परिसर में मनाई गई थी।

कांची कामाकोटी के जगतगुरू शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती स्वमीगल की उपस्थिती में २८ दिसंबर २००० को ही, भक्त हनुमान को चाँदी के कवच धारण करवाये गये थे।

आईये, इस दिगंबर मंदिर में विश्वरूप हनुमानजी के दर्शन करके, विनम्रता एवं सदभावना पायें।



 

 

 

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥