प्रचीन हनुमान मन्दिर, कनाट प्लेस, नई दिल्ली

जी के कोशिक

 

दिल्ली इन्द्रप्रस्था
विशिष्ट्तय दिल्ली के आठ नगरों की बात करें तो वास्तविक तौर पर यहां करीब पंद्र्ह जगहों में अलग़-अलग़ समय में, दिल्ली उजड़ी-बसी। इस स्थान के पुराने इतिहास को समझना मुशकिल नहीं है। दिल्ली कूट्नीतिक दॄष्टि से महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है। जहां गंगा के उपजाउ मेदान शुरू होतें हैं, तथा उसी माध्यम से आक्रमणकारियों का तांता लगा रहा।


दिल्ली का इतिहास प्रथानुसार महाभारत से जुड़्ता है। तीन हजार बर्ष पुर्व पौराणिक कथानुसार, दो चचेरों भाईयों - पांडव और कौरवों के बीच भव्य-युद्ध हुआ था। इसमें इन्द्रप्रस्थ शहर ही युद्ध का मुख्य कारण था। यह शहर संभवत: पांडवों ने ही बसाया और इसे ही दिल्ली के नाम से पुकारा जाने लगा।


अब इन्द्रप्रस्थ के कुछ अवशेष नहीं हैं, पर अभी हाल में ही, पुराने किले की खुदाई में सुंदर भूरे मिट्टी के बर्तन मिलें हैं जोकि इन्द्रप्रस्थ के अस्तितव: की पुष्टि कर सकतें हैं।


महाभारत एवं हनुमानश्रीमन्‌ नारायण ने भगवान राम का अवतार लेकर हमें धर्मानुयायी बनाया और वैकुंठ को चले गये। इसी के साथ रामायण के सभी पात्र वैकुंठ को चले गये, परन्तु भगवान हनुमान हमारे साथ इस संसार में धर्म और रामराज की स्थापना हेतू रह गये। केवल ये ही नहीं, उन्होनें श्रीमन्र‌ नारायण को अगले युग में देखा और धर्म स्थापनार्थ अपना योगदान दिया। उस समय महाभारत में हनुमान की उपस्थिति के बारे में एक किस्सा है कि जब पांडव जंगलों में, दुर्योधन द्वारा दिये गये अज्ञातवास के दौरान घूम रहे थे उसी समय एक दिन द्रोपदी दैविक खुशबू में इतना अनुरक्त हो गईं कि उसने भीम को वो फूल लाने को कहा। तभी भीम उस फूल को ढ़ूढ़्ने के लिये गंध के पीछे चल पड़े। उन्होंने पाया कि एक बूढ़ा बंदर उनका रास्ता रोके हुए था। भीम ने प्रोत्साहक ढ़ंग से रास्ता देने के लिये पुछा, हालांकि उन्हें ये पता न था कि वो उन्हीं के भाई हनुमान थे (दोनों वायु के अंश होने के कारणवश)। स्वर में अहंकार होने की वज़ह से, हनुमान बहुत बूढ़े और कमजोर थे उन्होनें भीम से पुँछ उठाने को कहा। अनिच्छा के साथ भीम ने पूंछ को उठाने की कोशिश की जो रास्ता अवरुद्ध किये हुए थी, लेकिन फिर भी कई कोशिश के बाद भी पुँछ को उठा नहीं सके। तब भीम को ज्ञात हुआ कि वो वानर भगवान हनुमान थे। भीम ने अपने अभिमानी व्यवहार के लिए माफी मांगी और कहा कि वो अहंकार की वज़ह से अधिक शक्ति विहीन हो गये थे।


यह कहा जाता है कि, भीम अर्जुन और भगवान कृष्ण के अनुरोध पर, भगवान हनुमान कुरूक्षेत्र युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण द्वारा संचालित अर्जुन के रथ के ध्वज पोस्ट में मौजूद थे।


इन्द्रप्रस्थ के पुराने मंदिर
दिल्ली में पाँच धार्मिक स्थलों को, पांड्वों के इन्द्रप्रस्थ से परंपरागत जोड़ा जाता है। और वो... योगमाया मंदिर महरोली में, कालका माँ मंदिर कालकाजी, भैरव मंदिर पुराने किले के पास, भैरव मंदिर कालकाजी, एवं बाल हनुमान मंदिर जंतर मंतर कनाट प्लेस के पास हैं। माना जाता है, कि ये तीर्थ स्थल पांडवकालीन हैं, और इनकी प्रतिमाएँ स्वयंभू हैं।


प्रचीन हनुमान मन्दिर कनाट प्लेस प्रचीन हनुमान मन्दिर, कनाट प्लेस, नई दिल्ली
प्रचीन हनुमान मन्दिर, जंतर मंतर कनाट प्लेस के पास, बाबा खड़्ग सिंह मार्ग पर स्थित है यह पांड्व-कालीन, भारत के प्रचीन हनुमान मन्दिरों में से एक है। इस मंदिर की मूर्ति स्वयंभू हैं।


इन्द्रप्रस्थ शहर इतिहास का एक हिस्सा रहा है। तथा दिल्ली वंश-पंरपंराओं का गढ़ था। पौराणिक कथाओं मॆ, मुस्लिम हमलों का राजपुत राजा पृथ्वीराज चोहान द्वारा हिन्दु प्रतिरोधों का वर्णन है। तौमर एवं चौहान राजाओं दवारा बनाये गये बहुत मंदिरों को मुस्लिम विजेताओं नें गिरा दिया और उन पत्थरों का, आउव्व्त-उल-ईस्लाम मस्जित लाल कोट कुतब परिसर, में बनाने के लिये दोबारा इस्तेमाल किया।


कनाट प्लेस के पास, बाबा खड़्ग सिंह मार्ग पर प्रचीन हनुमान मन्दिर ने, मुग़लों द्वारा हिन्दु मंदिरों की विनाश लीला सहन की है। वहां विमान में अर्धचन्द्र का चिन्ह, दुसरे हिन्दु तीर्थ स्थालों में विमान के उपर औम या सूर्य के चिन्ह से भिन्न है इसीसे प्रभावित होकर मुग़लों नें इस मंदिर को नष्ट नहीं किया। आमतौर पर जहां सुर्य भगवान या औंकार को प्रमुख्यता दी जाती हो, वहां विमान में अर्धचन्द्र का चिन्ह, हिन्दु मंदिरों में नहीं पाया जाता है।


देवता बाल हनुमान कनाट प्लेस
देवता बाल हनुमान, कनाट प्लेस, नई दिल्ली इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति बहुत ही निराली है, और भगवान हनुमान का मुख बालक जैसा है। पुजारी ने बताया कि भगवान यहां बाल रुप में हैं। उनका मुख दक्षिण दिशा में और हम उनकी एक आँख ही देख सकते हैं। भगवान बाल हनुमान बाँये हाथ में गद्धा और दाँया हाथ सीने पर पुजा की मुद्रा में है। फूलों से सजी इस मूर्ति का अध्यन ध्यान से करना पड़्ता है।


जिन्होंने यहाँ स्वयंभू बाल रूपी हनुमान की स्थापना की, ईश्वरीय आदेशों का अनुपालन करने वाले महाराज मंगलदास या दादागुरू के नाम से जाने जाते हैं, ।


मंदिर परिसर कनाट प्लेस हनुमान मन्दिर द्वार
प्रवेश द्वार, हनुमान मन्दिर, कनाट प्लेस, नई दिल्ली मन्दिर का मुख्य प्रवेश को द्वार भी कहतें हैं। द्वार पर कुशल शिल्पकारों ने उद्कीर्ण चित्रकारी करके भगवान के प्रति श्रद्धा का प्रमाण दिया है। इस चित्रकारी में संपूर्ण रामायण को दर्शया गया है और ये द्वार शताब्दी पुराना है। मंदिर का नवनिर्माण आखिरी सत्तर के दशक में हुआ। स्वामी तुलसीदास रचित संपूर्ण रामायण को मंदिर की मुख्य छत में चित्रकारी द्वारा दर्शाया गया है। चित्रों को इतनी खूबसूरती से बनाया गया है, कि आंखों से ही देखते बनता है। चित्रों के नीचे स्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस का पांचवां अध्याय सुदंरकांड के पूरे छंद संगमरमर की शिलाओं पर उत्कीर्ण हैं।


मंदिर परिसर का विकास कार्य नई दिल्ली नगरपालिका परिषद ने बड़ी सुंदर एवं सावधानी से किया। और यह धार्मिक गतिविधिओं का केन्द्र माना जाता रहा है। यह परिसर औरतों की हथेलियों पर मेहँदी रचाने के लिये भी प्रसिद्ध है। मेहँदी घोल का उपयोग करके औरतों की हथेलियों पर नक्काशी की जाती है। यह राजस्थान की मशहुर कला है, जो दिल्ली में आ गई है, तथा मंदिर परिसर इसका मु्ख्य केन्द्र है।


जब भी आप दिल्ली इन्द्रप्रस्थ में हों, तो इस प्राचीन मन्दिर में बालरुपी हनुमान के दर्शन करके मन की शांति एवं दिमाग का सकुन अवश्य प्राप्त करें।


 

 

 

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥