श्री जय हनुमान मंदिर, लालापेट
करूर, तमिलनाडु

जी के कोशिक

 

लालापेट
कुलिथलै, जिला करूर, तमिलनाडु के पास एक सुंदर गांव लालापेट स्थित है। जब आप कावेरी नदी से सटे हुये गांव में प्रवेश करतें हैं जोकि हरे-भरे धान के खेतों से घिरा हुआ है, केले और नारियल के बाग व मनमोहक दृश्य आपको मंत्र-मुग्ध कर देगें।


लालापेट का पेरूमल मंदिर
लगभग तीन सौ साल पहले इस गांव में एक दिलचस्प घटना घटी थी। श्री वरधराज पेरूमल के लिए गांव में एक सुंदर मंदिर था। जहाँ आसपास गांव के लोग मंदिर दर्शन के लिए आते थे। बरसात के दिनों में मंदिर दर्शन में बाधा उत्पन्न हो जाती थी विशेषकर जब कावेरी नदी का प्रवाह कगार तक आ जाता था। तब ग्रामीणों ने पेरूमल मंदिर को पास ही के कल्लंपल्ली गांव में स्थानांतरित करने का विचार बनाया। तदोपरान्त पेरूमल मंदिर लालापेट को कल्लंपल्ली गांव में स्थानांतरित कर दिया गया था।


मंदिर का ध्वजस्तंभ
इस प्रक्रिया में, पेरूमल मंदिर लालापेट के ''ध्वजस्तंभ' को भी स्थानांतरित करने की कोशिश की थी। 'ध्वजस्तंभ' ग्रेनाइट पत्थर का बना हुआ है, और वो जमीन से नहीं निकल पाया था। तब यह निश्चय किया गया कि इसे हटाने के लिए 'ध्वजस्तंभ' के चारों ओर की जमीन की खुदाई की जाए। जब खुदाई शुरू हुई, तो एक अद्भुत घटना घटी। ग्रामीणों की उपस्थिति में, 'ध्वजस्तंभ' के चारों ओर की जमीन से लाल रंग का द्रव्य बहना शुरू हो गया था। तब गांव के बुजुर्गों की समिति ने 'ध्वजस्तंभ' को स्थानांतरित करने का विचार त्याग दिया था।


हनुमानजी की दिव्य दिशा
श्री हनुमानजी ने गांव के बुजुर्गों में से एक को मंदिर का निर्माण हेतु दिव्य दिशा दी थी। निर्देशन के अनुरूप ही, श्री हनुमानजी की मूर्ति ठीक 'ध्वजस्तंभ' के नीचे स्थापित की गई थी। मूर्ति दक्षिणोमुखी है, और आराध्य नाम 'श्री जय हनुमान’ रखा गया था। तदोपरान्त 'श्री हनुमान’ के पुण्य स्थान का निर्माण हुआ था। इस मंदिर का महाकुंभाभिषेक एक बार १९४० में तथा फिर १९८४ में हुआ था।


इस मंदिर की स्थापना का यह एक अनूठा परिप्रेक्ष्य है। इतना ही नहीं तथा यह एक उर अनूठा है। यहा अद्भुत पत्थर संकेत करती है, इस अद्भुत लालापेट की शांत जगह में "भगवान की उपस्थिति एवं आशीर्वाद।"


मंदिर की अद्भुत पत्थर
इस मंदिर में एक अद्भुत पत्थर है जोकि अण्डाकार और देखने में थोड़ी सपाट है। और ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह पत्थर श्री हनुमानजी के हाथ से गिर गई थी जब वो श्रीलंका को संजीवनी पर्वत ले जा रहे थे। भक्त चाहे पुरुष हों या महिला, पवित्रता का पालन किया जाता है, और सुबह की बेला में मंदिर के कुओं से पानी लाकर स्नान करतें हैं। भक्तगण इस अद्भुत पत्थर को गीले कपड़े से बांधते हैं, और अपने दोनों हाथ अद्भुत पत्थर से सटाकर रखतें हैं। तथा अपनी इच्छाओं की पूर्ति-हेतु श्री हनुमानजी का स्मरण करतें हैं।


तब ये आश्चर्य घटित होता है कि अद्भुत पत्थर अपनी धुनी पर घुमने लगती है। यदि भकत की इच्छा भगवान के द्वारा पू्र्ण होनी होती है तो अद्भुत पत्थर दाईं दिशा की ओर से घूमती है। अगर भकत की इच्छा भगवान द्वारा पूर्ण न होने पर, अद्भुत पत्थर बाईं दिशा की ओर से घूमती है। एक बार अद्भुत पत्थर का घुमना शुरू होने पर, अपने हाथ जमीन पर रखे हुये भक्त को भी शिला के साथ-साथ घूमना पड़ता है। यदि इच्छा उचित नहीं है तो अद्भुत पत्थर बिलकुल नहीं घूमती है। ऐसा मत है, कि जब एकादशी गुरुवार, शनिवार या रविवार की होती है, तो सुबह नौ बजे से पहले का मुहुर्त शुभ होता है।


परमपावन श्री कांची कामकोटी जगतगुरू श्री चन्द्रशेखरेन्द्रा सरस्वती शंकराचार्य जी, श्री जयेन्द्र सरस्वती जी और श्री विजयेन्द्र सरस्वती जी ने भी इस मंदिर में भगवान के दर्शन किये थे।

 

|| सीतापति रामचन्द्र की जै। पवन सुत हनुमान कि जै। ||



अनुभव
इस शांतिपूर्ण क्षैत्र और साधरण से मंदिर की मनमोहक आभा भक्त के प्राकृतिक गुणों को बढ़ायेगी, जोकि हर मनुष्य में स्वत: होती है। तथा श्री जय हनुमान का आशीर्वाद भक्तों के महान विचारों को नई ऊंचाई पर ले जाएगा। यहाँ आप भक्तवत्सल श्री जय हनुमान का आशीर्वाद पाने के लिये आयें। भगवान आपकी मनोकामना जरूर पूर्ण करेगें॥

 

 

 

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

 

ed : August 2016