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वायु सुतः           श्री हनुमान मंदिर, बैरागी मठ, दक्षिण चित्रै वीदि, मदुरै, तमिल नाडू


जी के कोशिक

मीनाक्षी अम्मन मंदिर का दृश्य, 'ले टूर डू मॉन्डे' से ई। थोरोंड द्वारा उकेरी गई लकड़ी, 1869


काशी यात्रा

सनातन धर्म के अनुयायियों में से अधिकांश अपने जीवन में कम से कम एक बार गया की यात्रा करना चाहते हैं। गया को मोक्ष गया भी कहा जाता है, जहां लोग अपने माता पिता को आदर सम्मान के लिये, विशेष रूप से अपनी मां को श्रद्धा अर्पण करते हैं। गया की यात्रा के साथ-साथ, लोग अक्सर काशी/वाराणसी, और संगम [प्रयागों में प्रथम] भी जाते हैं। जहाँ तीन नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान होता है। यह पूरी यात्रा अक्सर आम भाषा में "काशी यात्रा" कहलायी जाती है।

कभी इन क्षेत्रों की एक साथ यात्रा करना मुश्किल माना जाता था, पर अब प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उन्नति और संचार-प्रणाली में प्रगति से इन चीजों ने यह बहुत आसान, आरामदायक और संभव बना दिया है। सभी दक्षिण, पश्चिम, पूर्व या उत्तर भारत में अब तक विकसित जिलों सहित, देश भर से लोग, इस पवित्र जगह की यात्रा करने आते हैं। पितरों का श्राद्ध करने के लिए यह एक बिंदु बना हुआ है।

इन पवित्र स्थानों पर जाने से ही काशी यात्रा खत्म नहीं होती, लोगों को प्रयागराज से गंगा का पवित्र जल लाकर, श्री रामेश्वरम में श्री रामनाथास्वामी (शिवलिंग) पर चढ़ाते हैं। इसीसे केवल काशी यात्रा पूर्ण होती है। दक्षिण से लोग पहले रामेश्वरम और फिर संगम आदि पर जाएँ, और गंगा का पवित्र जल लायें। यह एक आम कहावत है कि रामेश्वरम में गंगा के पवित्र जल लाने के इस अभ्यास से उत्तर और दक्षिण के लोग संगठित हुये हैं।

मदुरै एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। रामेश्वरम जानेवाले सभी यात्रियोँ इस शहर के होते हुये यात्रा करने थे। आइये हम मदुरै के कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर नजर डालें।

प्राचीन मदुरै

मदुरै का गौरवशाली इतिहास उन दिनॊं से है, जबसे शहर पंड्यावंश द्वारा शासित था। आधुनिक समय में, मलिक काफूर को कोई भूल नहीं सकता, शहर की लूट-खसोट करने के लिये, तथा दिल्ली सल्तनत का आदेश पालन करने के लिए रास्ता बनाया था।

मलिक काफूर (१२९६-१३१६) एक हिजड़ा दास था, जो अलाउद्दीन खिलजी, १२९६-१३१६ दिल्ली सल्तनत के शासक की सेना में जनरल के रूप में सेवा कर रहा था। वो दिल्ली सल्तनत का विंध्य सीमा से परे अपने राज्य का विस्तार करने के लिए जिम्मेदार था। उसने न केवल दिल्ली सल्तनत के तहत दक्षिण के शासकों लाया था बल्कि वो व्यक्ति था जिसने मंदिरों, जनता के धन और दक्षिण के शासकों को बखुबी लूटा था। उसके द्वारा दक्षिण के हिंदू मंदिरों को नष्ट करने का अभिनय अच्छी तरह से इतिहास में दर्ज है। मदुरै में उसकी बर्बरता के लिए कोई अपवाद नहीं है। दक्षिण प्रदेशों में उसका स्वामित्व होने पर, दिल्ली सल्तनत का एक प्रतिनिधि नियुक्त करने के बाद, वह लूट के साथ दिल्ली के लिए रवाना हो गया था।

मुस्लिम इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी के अनुसार, मलिक काफूर २४१ टन सोना, २०००० घोड़ों और ६१२ हाथियों समेत लूटा हुआ खजाना साथ लादकर वापस दिल्ली के लिए चला गया।

इस महान शहर में कई यात्रियों, जैसे इब्न बतूता, मार्को पोलो सभी ने अपने समय के मदुरै की सुंदरता का वर्णन किया है। इस से यह पता लगता है कि मदुरै शहर उस समय कितना अमीर और सर्व संपन्न था।

रानी मंगम्माल, मदुरै

रानी मंगम्माल, मदुरै धन, समय और फिर से की लूटपाट के बाद इस शहर का गौरव वापस लोट आया था, जब यह नायकों के शासनकाल के दौरान, विजयनगर साम्राज्य का एक हिस्सा बन गया था और बाद में नायकों के शासनकाल में। नायक शासकों के बीच एक सुनहरी समय था इस अवधि में रानी मंगम्माल ने शासन किया था। रानी मंगम्माल को उसके शिशु पोते विजयरंगा चोक्कनाथा की ओर से राज-प्रतिनिधि बनने के लिए मजबूर किया गया था जब वह १६८९ में केवल तीन महीने का था और १७०५ तक शासन किया, टलवाय (गवर्नर जनरल) नरसप्पा की अध्यक्षता में एक सक्षम प्रशासनिक परिषद के साथ ताज पहनाया गया था।

जहाँ उसने कुशलतापूर्वक राज्य का शासन किया, वहीं उसने पर्याप्त राजनयिक चतुराई से युद्ध किये बिना किसी भी क्षेत्र कों नहीं खो्या था। उसने समय- समय पर सेना का नेतृत्व किया और वो एक बहादुर महिला थी। वह लोगों के कल्याण की दिशा में भी काफी उदार थी। उसने कई मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाया था और सबसे बड़ा योगदान याद रखने लायक, सकता रामेश्वरम से मदुरै उसके द्वारा बनाया गया राजमार्ग, अब भी यह राजमार्ग "मंगम्माल पेरुम सलाई" के नाम में जाना जाता है। यात्रियों के लिए आराम करने के लिए राजमार्ग मे धर्मशाला, सरायों का निर्माण करवाया था।

जो लोग संगम, गया, काशी और रामेश्वरम तीर्थ यात्रा के उपक्रम में अपने कर्तव्य को पूरा करना चाहते थे उन्हें इसी प्रकार रानी मंगम्माल से मदद मिलती थी।

रानी अहिल्या बाई होल्कर

हम उसके साहस और उनके प्रजा के प्रति कल्याण के लिए और साहस के लिये रानी मंगम्माल को याद किया जाता है, इसी तरह इंदोर की रानी अहिल्या बाई होल्कर को भी याद किया जाता है। दोनों रानियों को समय की परिस्थियों के कारण राज्य की बागडोर सँभालनी पड़ी थी। उन दोनों में साहस, सक्षम कुशल राजनायिक प्रशासन इत्यादि में समानता थी। उनके मन में प्रजा का कल्याण ही प्रधान महत्व का था। अन्य बलों द्वारा नष्ट करने पर, इन दोनों शासकों ने कई मंदिरों का नवनिर्माण करवाया था।

वर्तमान मंदिर मत्रु गया में, जहाँ धार्मिक रीती रिवाज से तर्पण होता है वो रानी अहिल्या बाई ने बनवाया था। सारे भारतवर्ष में उन्होंने कई मंदिरों (संख्या अनगनित है) का पुर्ननिर्माण करवाया था उनमें से विशेष विश्वनाथ मंदिर काशी में, मत्रु गया मंदिर गया में, सोमनाथ मंदिर सोमनाथ में, ओमकारेश्वर मंदिर ओमकारेश्वर में और राधाकृष्ण मंदिर रामेश्वरम। यह होल्कर परिवार की विशेषता थी कि उन्होंने राजस्व में से खर्चा नही लिया था धार्मिक कार्यों तथा अपने खर्चों के लिये अपना निजी पैसा प्रयोग किया था। उनके पास निजी पैसा उनकी प्रोपर्टी से था जिससे उन्होंने इन मंदिरों का निर्माण करवाया था। इन दोनों रानियों का सनातन धर्म के प्रति योगदान अधिक अतियंत था।

काशी यात्रा के साथ रामेश्वरम को जोड़ने का यह अभ्यास सभी वर्ग और भारत क्षेत्र के लोगों को एकीकृत किया था। बहुत लोग दक्षिण से काशी, गया, आदि में जाकर बस गये थे। उसी तरह उत्तर से लोग दक्षिण में आते थे और कई तिरुचिरापल्ली, मदुरै और रामेश्वरम में बस गये थे।

बैराही/बैरागी

बैराही या बैरागी एक शब्द वैराही से निकाली गई जिसका अभिप्राय 'एक व्रत में साथ रहने वाले लोगों' से है। जिन लोगों का उद्देश्य अपने जीवन में 'मोक्ष' प्राप्त करने के लिए संदर्भित करता है। यह लोग इसे प्राप्त करने के लिए कोई भी साधन अपनाने के लिए पहचाने जाते हैं। वहाँ बहुत से बैराही हैं, जो "मोक्ष-प्राप्ति" लक्ष्य का पीछा करते हुये इन पवित्र क्षैत्रों की यात्रा कर रहे हैं।

इनमें से कुछ संत जो दक्षिण भारत की पवित्र यात्रा पर आये थे, उन्होंने दक्षिण भारत में विभिन्न स्थानों पर बसने का फैसला किया था। उनमें से कुछ ने यात्रीयों के लिये आश्रमों [धर्मशाला या मठ नाम में जाना जाता] का निर्माण करवाया और उसमें अपनी पसंद के देवी-देवताओं को स्थापित किया। ऐसे मठ दक्षिण भारत में बैरागी मठम या बैराही मठम से जाने जाते हैं। आप अरणि, कांचीपुरम, चेन्नई, त्रिची, मदुरै, तिरुनेलवेली, रामेश्वरम आदि जैसी जगहों में इस तरह के मठ देख सकते हैं।

मदुरै का बैरागी

लगभग तीन सौ साल पहले उत्तर भारत से रामेश्वरम यात्रा के लिए एक ऐसे संत आये थे। मदुरै होते अपनी पवित्र यात्रा पर, वो शहर की सुंदरता और लोगों के आतिथ्य-सत्कार से बहुत प्रभावित थे, और इसी कारणवंश उन्होंने मदुरै के इस पवित्र शहर में रहने का निर्णय लिया।

वो दिव्य दिशा के अंतर्गत एक पवित्र पीपल पेड़ की तलाश में थे, जहां पर वो आत्म विद्या के अभ्यास के लिए अपने आपको सुव्यवस्थित कर सकें।

पीपल का पेड़

पीपल का पेड़ या पवित्र अंजीर भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण पश्चिम चीन और हिन्द=चीन का अंजीर मूल की एक प्रजाति है। यह पेड़ अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसेकि बोधि वृक्ष, अश्वत्थ पेड़, और तमिल में यह अरसा मारम से जाना जाता है।

भारत में, साधु [संन्यासियों] पुर्नजन्म के चक्र से मुक्त होने के लिए पवित्र पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान-साधना करते हैं। आम तौर पर यह अभ्यास है कि लोग इस वृक्ष की परिक्रमा करते हैं, अपने इष्ट देवता का ध्यान करतें है। यह कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा जड़ में रहते हैं, तने में भगवान विष्णु और इस पेड़ के ताज में भगवान शिव और इसलिए इसे "वृक्ष राजा" कहते हैं। तमिल में इसे अरसा मारम जिसका अर्थ है 'पेड़ो का राजा'।

श्री हनुमान मंदिर बैराही मठ, दक्षिण चित्रै वेदही, मदुरै, तमिल नाडु

बैरागी मठ, मदुरै

बैरागी मठ, दक्षिण चित्रै वीदि मदुरै तमिल नाडू अन्य क्षेत्र [बैराही/बैरागी] से योगी ऐसे ही पीपल के पेड़ के नीचे बसे थे, जोकि मदुरै के दक्षिण चितिरै स्ट्रीट में स्थित है। बैराही द्वारा अपने क्षेत्र के लोगों के लिए आश्रय और भोजन दे दिया था। ऐसे कई यात्रीगण इस सेवा से लाभान्वित थे। हालांकि, वहाँ उनके लिए कोई स्थायी आश्रय नहीं था। बैराही चाहतें थे, कि इन यात्रियों की सेवा के लिए एक 'मठ' की स्थापना की जानी चाहिये।

उस समय की अवधि के दौरान, इस बिराही की तपस्या ने प्रशासनिक लोग का ध्यान आकर्षित किया था, जोकि उस समय शासन कर रहे थे। वे उदार थे

और बैरागी को दक्षिण चिथिराई स्ट्रीट में रहने की अनुमति दी गई थी। उन्होंने कहा कि जहां वह कुछ राजस्व खिलाने के लिए और लोगों की सेवा करने के लिए मिल सकता है से उन्हें पास के गांव में कुछ भूमि आवंटित की थी जिससे उन्हें कुछ राजस्व मिले और वो लोगों को खिलाने के लिए और सेवा करने के लिए कुछ खर्चा जुटा सकें।

जैसाकि बैरागी का अभ्यास था, उनके इष्ट देवता श्री हनुमान को प्रतिष्ठित किया था और तब से वहाँ उनकी पूजा होती है। बाद में, बैरागी के अगले मुख्या का आदेश पारित कर दिया।

इस प्रकार बैरागी मठ दक्षिण चिथिराई स्ट्रीट में अस्तित्व में आया था।

बैरागी मठ के देवी-देवता

श्री हनुमान, बैरागी मठ, दक्षिण चित्रै वीदि मदुरै तमिल नाडू अब तक वहां कई बैराही प्रमुख थे जो मठ के महंत कहलाये जातें हैं। आखिरी बैराही महंत श्री गोवर्धनदास जी ही मठ प्रमुख थे। उनके पूर्ववर्ती महंत श्री रघुनाथ दास जी रहे थे। इससे पहले वहाँ अन्य महंतों ने मठ की अध्यक्षता की थी, लेकिन उनका व्यवस्था क्रम अज्ञात है। इन अवधियों के दौरान परिसर मदुरै के लोगों के लिए भी एक लोकप्रिय गंतव्य रहा है, इन महंतों द्वारा स्थापित श्री हनुमान और श्री लक्ष्मी नरसिम्हां अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करतें थे।

बैरागी मठ का प्रशासन

श्री गोवर्धनदास जी महंत के भगवान लक्ष्मी नरसिम्हां चरण-कमल में शरणागति उपरांत, महंत का आदेश मठ के स्थानीय सेवादार को पारित किया गया था जोकि मठ के कार्यों के लिये समर्पित था। इस प्रकार मठ के मामलों का एक शानदार तरीके से निर्वाह हुआ। पहले महंतों के अनुरूप सभी उत्सवों का आयोजन, विधिपूर्वक समपन्न होता रहा है।

श्री हनुमान, बैराही मठ, मदुरै

पहले महंत द्वारा मठ के मुख्य देवता श्री हनुमान स्थापित हैं। श्री हनुमान पीपल के पेड़ के नीचे प्रतिष्ठित हैं। एक साधारण से देवता जो भक्तों को सावधान रहने के लिये प्रेरित करते हैं। अपने पैरों पर दृढ़ता से खड़े, आसन से ही भक्तों में आत्मविश्वास भर देतें हैं। भगवान के बाएं हाथ में आलीशान गदा पकड़ रखी है। भगवान का दाहिना हाथ 'अभय मुद्रा' में उठाया हुआ है, जोकि भक्तों को आत्मविश्वास दे रहा है। उनकी ऊपर उठाई ही पूंछ, लहरियादार शैली में सिर के पीछे चली जाती है जोकि भक्तों को कैसे व्यावहार-कुशल और लचीला होना चाहिए, बताती है। श्री हनुमान आपको कोटि कोटि प्रणाम।

 

 

अनुभव
स्वयं एवं समाज के लिए ईमानदार बनने तथा सतर्कता, प्रेरणा, आत्मविश्वास और महिमा पाने के लिये, आइये इस बैरागी मठ के श्री हनुमानजी के दर्शन करें।
प्रकाशन [मार्च 2016]

 

 

~ सियावर रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय । ~

॥ तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

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