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श्री व्यासराजा प्रतिष्ठापन हनुमान :

वायु सुतः           नववृंदावन, शेनबक्कम, वेल्लोर, तमिल नाडु


जी के कोशिक

नववृंदावन, शेनबक्कम, वेल्लोर, तमिल नाडु


शेनबक्कम

श्री श्री व्यासराज स्वामीगल
तमिल नाडु में शेनबक्कम वेल्लोर के पास स्थित है। चेन्नई से वेल्लोर को जाते हुये वेल्लॊर के पास एक रेलवे पुल आयेगा, उस पुल से नीचे उतरने के पश्चात्, सर्विस लेन से होते हुये दाँये हाथ को मुड़ जायें। यह सड़क पिल्लैयार कोइल मार्ग के नाम से जानी जाती है, और इससे तीसरे चौराहे पर नववृंदावन का साइन बोर्ड दिखाई देगा, और वो सड़क नववृंदावन को जाती है।

यह जगह पालारू नदी के तट पर है और नदी यहाँ उफान लेती है। पहले यह स्थान स्वयंबक्कम के नाम से जाना जाता था और यहाँ जबसे भगवान गणेश स्वयंभू रूप में दिखाई दिये, तबसे इसका नाम शेनबक्कम हो गया। ये भी कहा जाता है कि गांव का मूल नाम शेनबगवनम था, क्योंकि यह सुगंधित शेनबाग पेड़ों से भरा था।

शेनबक्कम का गोरव

श्री माधवाचार्य ने इस क्षेत्र का दौरा किया था। श्री राघवेंद्र के पहले अवतार श्री व्यासराजा ने यहां एक मुख्यप्राण देवता स्थापित किये थे। यहाँ श्री राघवेंद्र रुके थे, और चौदह दिनों तक तप भी किया था।

गुरू श्री राघवेंद्र मठ

लेकिन आज शेनबक्कम स्वयंभू विनायक मंदिर की वजह से जाना जाता है, तथा श्री राघवेंद्र मठ नववृंदावन में है। श्री माधवाचार्य द्वारा चलाये द्विथा दर्शनशास्त्र के आठ संत अनुयायियों को यहाँ जीववृंदावन [अंतिम विश्राम जगह] लेने के लिए चुना। नौवा गुरु श्री राघवेंद्र स्वामी का मिर्थिकावृंदावन है। यहां इस प्रकार कुल नौ वृंदावन रखे हैं और इसलिये इसका "नववृंदावन" नाम पड़ा है।

पाठक कृपया ध्यान दें कि यह "नववृंदावन", तुंगभद्रा नदी के तट पर बसे "नववृंदावन" से अलग है तथा जोकि बहुत प्रसिद्ध है। इन दोनों स्थानों को अलग रखने के लिए, इसे “दक्षिण नववृंदावन" से जाना जाता है।

दक्षिण नव-वृंदावन

दक्षिण नववृंदावन, शेनबक्कम, वेल्लोर, तमिल नाडु इस जगह के नौ वृंदावन निम्नलिखित संतों के हैं:-
1. श्री विद्यापति त्रितरू - उत्तराति मठ के
2. श्री सथ्यादिराजरू - उत्तराति मठ के
3. सन्यासी शिष्य श्री केश्व वोदेयरू
4. सन्यासी शिष्य श्री गोविन्दा माधवा वोदेयरू
5. सन्यासी शिष्य श्री बूवरहा वोदेयरू
6. सन्यासी शिष्य श्री रघुनाथ वोदेयरू
7. श्री श्रीपति त्रिथारू - व्यासराजा मठ के
8. श्री कंबलुरू रामचन्द्रा तिर्था - व्यासराजा मठ के
9. श्री राघवेंद्र स्वामी का मिर्थिकावृंदावन

दक्षिण नववृंदावन, वेल्लोर तमिल नाडु

वेल्लोर किला, चिन्ना बोम्मी नायक और थिम्मा रेड्डी नायक द्वारा बनाया गया था, सदाशिव राय के अधीनस्थ सरदारों ने 1566 ईस्वी में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की।

विजयनगर शासन की फिर से स्थापना के बाद, वेल्लोर किले को महत्वपूर्ण प्रसिद्धि मिली, तलिकोटा लड़ाई के बाद चंद्रागिरि उनकी चोथी राजधानी के रूप में।

श्री विद्यापति त्रितरू - उत्तराति मठ के

वो श्री रघोतमा तीर्था से दूसरे नंबर पर थे, जिनका जीववृंदावन तिरूकोइलुर में है। वो द्विथा दर्शनशास्त्र के साथ अच्छी तरह से वाकिफ थे और अपनी विद्वानों से वाद-विवाद के लिए जाने जाते थे। मुक्ति : ज्येष्ठ बगुला सर्वा एकादशी

श्री सथ्यादिराजरू - उत्तराति मठ

उत्तराति मठ के श्री सथ्यादिराजरू एक शक्तिशाली और महान वाद-विवाद करने वाले, अच्छे वक्ता और विद्वान थे। उन्होंने विवादात्मक बहस में कई विरोधियों को हराया और अपने गुरु के लिए सोने एवं अनमोल रत्नों के रूप में उपहारों की पेशकश की। यह श्री हरि की इच्छा थी कि वो इस विनाशी संसार से विदा लेकर अपना मूल रूप धारण करें, और इसलिये हरि-पद पाने से पहले उन्हें दस दिनों के लिए श्री राम की पूजा का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

दक्षिण नववृंदावन, वेल्लोर तमिल नाडु

दक्षिण नववृंदावन, शेनबक्कम, वेल्लोर, तमिल नाडु जिस संत ने ढहते हुये वेल्लोर किले को वास्तविकता प्रदान की, अपने सपने में सुझाव से वेल्लोर किले की दीवारों के बीच वृंदावन की तरह संरचनाओं को बनाना चाहिये।

संत के अपने आश्रम गुरु श्री विद्यपति के रूप में था, और संत शिष्यों में से चार ने उसी परिसर में वोड़ेयार रूप में वृंदावन प्राप्त कर लिया।
मुक्ति : आषाढ़ शुक्ल नवमी

चार वोडैयारू

जो पवित्र पुरुष सन्यास लेतें हैं और बिना किसी कामना के अपने गुरु की सहायता करतें हैं उन्हें 'पिठि सन्यासी' कहा जाता है और उन्हें "वोडैयार" शीर्षक दिया जाता है। इस परिसर में चार ऐसे ही संतों के जीववृंदावन पाये जाते हैं और उनके नाम इस प्रकार हैं:-
1. सन्यासी शिष्य श्री केश्व वोडैयारू
2. सन्यासी शिष्य श्री गोविन्दा माधवा वोडैयारू
3. सन्यासी शिष्य श्री बूवरहा वोडैयारू
4. सन्यासी शिष्य श्री रघुनाथ वोडैयारू

श्री श्रीपति त्रिथारू - व्यासराजा मठ के

वो श्री व्यासराजा मठ की वंशावली में सोलहवें स्थान पर थे और उनकी अवधि 1598 से 1612 के बीच थी। इसी अवधि के दौरान तब के शासकों ने श्री व्यासराजा मठ को भेंट स्वरूप इन स्थानों को प्रदान किया था। इस क्षेत्र में उन्होंने चातुर्मास का उपवास भी किया था। मोक्ष: आषाढ़ शुक्ल व्दादशी सनि वार.

श्री कंबलुरू रामचन्द्रा तीर्थ - व्यासराजा मठ के

वह पेनुकोंडा के प्रसिद्ध श्री लक्ष्मीकांत तीर्थ के दूसरे उत्तराधिकार शिष्य थे (जोकि दूसरे और प्रतिष्ठित छात्र महान व्यासराज खुद थे) और श्री व्यासराज के उपरान्त पांचवें थे। वो 1612 ईस्वी में श्री 108 श्रीपति तीर्थ के उत्तराधिकारी बने थे। उन्होंने 20 साल की अवधि के लिये 1632 ईस्वी तक शासन किया था।

श्री व्यासराजा प्रतिष्ठापन श्री मुख्य प्राण [हनुमान] - दक्षिण नववृंदावन, शेनबक्कम, वेल्लोर, तमिल नाडु उन्होंने द्विथा दर्शनशास्त्र को स्वीकार किया और वो एक महान पंडित थे, उनकी पंडितपूर्णता को उस समय सभी सम्मान करते थे। उनके जीवन में कुछ चमत्कार हुआ था जिससे लगता था कि उन पर श्री हरि का आशीर्वाद था। एक बार, वो भगवान श्रीनिवास के दर्शनों के लिये तिरूपति गये थे। बहुत भीड़ के कारण, और कुछ विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों को मिलने से, यहां तक कि लंबे समय के इंतजार करने के बाद भी, वो दर्शन करने में असमर्थ रहे थे, और उन्हें निराश लौटना पड़ा था। उन्होंने एक श्लोक की संरचना की :-“ऐश्वर्य मदमत्थोसी इदानीम माम उपेक्ष्यसे, वदीनाम कलहे प्राप्थे अहमेव गथिस्थवा” - और उन्होंने यह श्लोक उत्सव मूर्ति के यात्रा मार्ग के दौरान लिखा था। श्लोक का अर्थ है कि "हे! श्रीनिवास, आप अब अपने धन की वजह से अभिमानी हैं और इसलिए मुझे अनदेखा किया। परन्तु जब भी आप विवादीयों के बीच चर्चा का विषय बने, तो केवल मैंने ही आप का बचाव किया है। तुरंत प्रभु ने अपने विशेष भक्त को अनुमति देने का महंत को निर्देश दिया और उन्हें दर्शन दिये।

एक बार यात्रा के दौरान, कुछ लोगों ने उनका विरोध किया और उन्हें वाद-विवाद में हराने में असमर्थ रहने के बाद, उनके जत्थे के गुजरते समय उनके सिर पर एक बड़ा पत्थर गिरा कर, उन्हें मारने की व्यवस्था की। हालांकि लोगों ने योजनावद्ध प्रयास किया, पर श्री कंबलुरू रामचंद्र तीर्थ को एहसास हो गया था, उन्होंने पत्थर को आदेश दिया -"अंतराले थिस्ता"- मध्य हवा में, आप जहां हो

वहीं रहो। ना ही पत्थर गिरा और ना ही महान तपस्वी आघात हुये। तत्पश्चात उन्होंने अपने शिष्यों को आदेश दिया कि वो पत्थर को अपने साथ ले चलें और अंत में आदेश दिया कि पत्थर को उनके वृंदावन-स्थल पर रख दिया जाये। आज भी शेनबक्कम में उनके वृंदावन पर रखा पत्थर देख सकते हैं। इस घटना से पता चलता है कि एक अच्छे विद्वान के रूप में उनके महान गुणों के अलावा, वो अपरोक्ष को जानने वाले थे उन्होंने योगाभ्यास एवं प्रभु पर ध्यान करने से विभिन्न सिद्धियाँ प्राप्त की थीं।
मुक्ति: मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया

यह चमत्कार, श्री सथ्यादिराजरू - उत्तराति मठ के और श्री कंबलुरू रामचन्द्रा तिर्था - व्यासराजा मठ के, दोनों को जिम्मेदार ठहराया है, जोकि एक वाद-विवाद का विषय है।

गुरू श्री राघवेंद्र स्वामी

कृपया गुरू श्री राघवेंद्र स्वामी की संक्षिप्त जीवनी के लिए हमारे हनुमंत भक्त खंड देखें।

यहाँ श्री राघवेंद्र स्वामी का मिर्थिकावृंदावन की स्थापना "श्री गुरू राघवेंद्र वृंदावन सेवा समिति, वेल्लोर" ने की थी। इस क्षेत्र में आज वेल्लोर के लोगों की मदद से तथा उदार योगदान के साथ द्विथा दर्शनशास्त्र के महान संतो के वृंदावनों को बनाए रखा है।


यह क्षेत्र गुरु श्री राघवेंद्र के दिव्य दिशानिर्देश से ही अपने पुराने गौरव में आ रहा है।

श्री मुख्यप्राण देवरू - श्री व्यासराजा स्वामी द्वारा स्थापित, वेल्लोर तमिल नाडु

श्री मुख्यप्राण देवता [श्रीहनुमान] को श्री व्यासराज स्वामी द्वारा वेल्लोर तमिल नाडु में स्थापित किया था।

इस परिसर के निकट ही श्री व्यासराज स्वामी द्वारा स्थापित श्री मुख्यप्राण देवता [श्री हनुमान] एक अलग मन्दिर में मौजूद हैं। इस क्षेत्र में श्री हनुमान देवता की ऊंचाई लगभग तीन से चार फीट है। पूर्व की ओर रूख (मुख) किये हुये, श्री हनुमान जी सीधा कटाक्ष के माध्यम से भक्तों को दर्शन दे रहे हैं, जोकि श्री व्यासराज प्रदेश्त में एक दुर्लभ परिस्थति में मौजूद हैं। वो बाऐं हाथ में सोवगंधिका फूल और दायाँ हाथ अभय मुद्रा में उठाये हुये हैं। वो भक्तों को निर्भयता की दीक्षा प्रदान कर रहें हैं। उनका सिका कॊ चोटी बनाकर दायें कंधे से दाहिनी तरफ लटकता हुआ दिखाई देता है।

इस क्षेत्र का गौरव

द्विथा दर्शनशास्त्र के संस्थापक श्री माधवाचार्य जी ने इस क्षेत्र का दौरा किया था। श्री राघवेंद्र के पिछले अवतार श्री व्यासराज जी ने इस क्षेत्र में श्री मुख्यप्राण देवता की स्थापना की थी।

पुज्या गुरू श्री राघवेंद्र स्वामी इस क्षेत्र में चौदह दिनों तक रहे थे। यह माना जाता है कि श्री कंबलुरू रामचन्द्रा तिर्थ तथा गुरू श्री राघवेंद्र इस क्षेत्र में मिले थे।

 

 

अनुभव
इस क्षेत्र के व्यासराजा प्रदेश्त में श्री मुख्यप्राण देवता के दर्शनों से हमारे जीवन में शांति, आत्मविश्वास और सफलता निश्चित है।
प्रकाशन [जनवरी 2015]

 

 

~ सियावर रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय । ~

॥ तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

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