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वायु सुतः           त्रि-नेत्र दस भुज श्री वीर हनुमान मंदिर अनन्थमंगलम तमिल नाडु


जी के कोशिक

त्रि-नेत्र दस भुज श्री वीर हनुमान मंदिर अनन्थमंगलम तमिल नाडु


अनन्थमंगलम

हनुमान तीर्थ, त्रि-नेत्र दस भुज श्री वीर हनुमान मंदिर,अनन्थमंगलम तमिल नाडु तमिलनाडु के नागपट्टिनम जिले में माइलादुथुरै और नागपट्टिनम को जोड़ने के लिए राजमार्ग त्रंगम्बाड़ी और त्रिरूकदैयुर से गुजरता है। अनन्थमंगलम, थरंगम्बाड़ी और थिरूकदैयूर को जोड़ने वाले राजमार्ग से एक किलो मीटर की दूरी पर स्थित है।

त्रंगम्बाड़ी (तब त्रंउएबर से प्रसिद्ध) पूर्वी तट पर एक प्रसिद्ध बंदरगाह है, जोकि पुर्तगालीयों द्वारा उपयोग की गई थी। त्रिरूकदैयुर में अबिरामी मंदिर स्थित है। अबिरामी ने, अपने प्रबल भक्त श्री अबिरामी पड्डर द्वारा किए गये एक गलत बयान को कायम रखने के लिए, अपने कान की बाली को चाँद की तरह बनाने के लिए, आकाश में फेंक दिया। श्री पड्डर ने राजा को बताया था, कि एक नया चाँद आकाश में दिखाई देगा, हालांकि वास्तव में उस दिन अमावस्या थी।

अनन्थमंगलम के त्रि-नेत्र हनुमान

अनन्थमंगलम के हनुमान मंदिर में हनुमानजी की तीन आंखें तथा दस हाथों में विभिन्न आयुध शस्त्र होने कारण प्रसिद्ध है। मंदिर सुहावना अलौकिक वातावरण में, श्री राजगोपाला पेरूमल मंदिर के निकट है, जोकि विजयनगर के राजाओं की अवधि के दौरान बना था। हनुमानजी की चर्तुभुजाओं में शंख, चक्र, नवनीत और कोड़े के साथ मंदिर में विराजमान उत्तरमुखी हैं, जबकि श्री राजगोपाला पेरूमल मंदिर में पूर्वोमुखी है। मंदिर के सामने तालाब, "हनुमान तीर्थ" के रूप में जाना जाता है, और इससे कई बीमारियाँ ठीक हुई हैं। "त्रि-नेत्र दस भुजा श्री वीर हनुमान" की मूर्ति, साढ़े चार फीट ऊँची पंचतत्व से बनी हुई है। 'उत्सव मूर्ति' [देवता को शोभायात्रा में ले जाना] का इतना आकर्षण है, कि भक्तों पर मनभावन आनन्द बरस रहा है, तथा भक्तगण देवता से अपनी आँखें कभी नहीं हटाना चाहते। वहीं वीर हनुमान श्री राजगोपाला मंदिर में दक्षिण मुखी हैं।

विशेष रूप का विवरण

श्री राजगोपाल स्वामी मंदिर,अनन्थमंगलम तमिल नाडु इ्न हनुमान के विशेष रूप के पीछे की कहानी इस तरह है:-
रावण का वध करने के बाद, श्री राम और सीता ने अयोध्या पट्टाभिषेक के लिये प्रस्थान करना था। तभी नारद मुनि ने श्री राम को बताया कि श्रीलंका राजवंश से संबंधित दो राक्षसों से उनको खतरा था। जबकि लंका के सभी राक्षस धार्मिक युद्ध में मारे गए थे, उनमें से दो राक्षस - रक्त बिन्दू और रक्त रक्कधन बच गए थे, जोकि श्री राम और उनकी सेना को नष्ट करके अपने लोगों की हत्या का बदला लेना चाहते थे। यह लक्ष्य प्राप्त करने हेतु, दोनों ने समुद्रतल में जाकर गंभीर तपस्या शुरू कर दी थी। अगर वे तपस्या पूरी कर लेते, तो वो दोनों दुनिया को नष्ट करने में सक्षम हो जाते, और इसीलिए ऋषि नारद ने राम को अयोध्या रवाना होने से पहले, लड़ने का आग्रह किया था। यहाँ तक कि राम भी इस कार्य को पूरा करने के लिए इच्छुक थे, तभी उन्हें याद आया कि उनके भाई भरत अयोध्या में इंतज़ार कर रहे थे, और अगर वापसी में देरी हुई तो भरत आत्महत्या के संभावित उद्देश्य के लिये, आग में कूद कर अपने आपको समर्पित न कर दें। श्री राम की इस कठिन परिस्थिति की सराहना करते हुए हनुमान ने दोनों राक्षसों से लड़ने का प्रस्ताव रखा, जिससे श्री राम भी सहमत हुये थे। सभी देवता, जो दोनों राक्षसों की तपस्या की वजह से चिंतित थे, इस घटनाक्रम से खुश हुये और दोनों राक्षसों पर हनुमान की जीत के लिए आशीर्वाद दिया।

"त्रि-नेत्र दस भुज हनुमान"

श्री राम ने अपना अद्वितीय धनुष तीरों के साथ और एक हथियार नवनीत हनुमान को प्रदान किये दोनों राक्षसों से लड़ने के लिये। विष्णु ने शंख, सुदर्शन चक्र और साथ में एक हथियार मथ्थक्ष देकर उनकी सहायता की थी। ब्रह्मा ने उसे एक शक्तिशाली अंकुश दिया था। शिव ने अपना तीसरा नेत्र और अपना त्रिशूल हनुमान को देकर सशक्त किया था। पार्वती देवी ने उन्हें अपना कोड़ा दिया था। लक्ष्मी ने पदम दिया और गरूण ने अपने पंख श्री हनुमान को दिये थे। इस प्रकार श्री हनुमान ने इन सभी अस्त्रों से लैस "तीन नेत्र दस भुजा श्री वीर हनुमान" का रूप प्राप्त किया था। हनुमानजी का यह रूप अनन्थमंगलम मंदिर में पीठासीन इष्ट देवता द्वारा दर्शाया गया है। उनके पांच दाएं हाथों में सुदर्शन, त्रिशूल, अंकुश, तीर और मथ्थक्ष ले रखा है। उनके पांच बाएं हाथों में शंख, पदम, कोड़ा, धनुष और नवनीत ले रखा है। तीसरी आंख उनके माथे को सुशोभित कर रही है। उनकी पीठ पर तीरों से भरा तूणीर है।

अनन्धमंगलम और अनन्थमंगलम

क्योंकि आशीर्वाद उन्हें सभी अग्रणी देवताओं से मिला था, हनुमान ने देवताओं की क्षमताओं को आत्मसात कर लिया था, और अपना प्रसिद्ध विश्वरूप प्राप्त करके आसानी से दोनों राक्षसों को परास्त किया था। प्रभु का आकार इतना विशाल था, कि सामान्य आंखों में पूर्ण आकार नहीं समा सकता था। दोनों राक्षसों का संहार कार्य पूरा करने के बाद, प्रभु ने अपने भगवान श्री राम [आनंदकंद] के साथ रहने का निर्णय लिया, जोकि राजगोपालन नाम से मंगलम के मुख्य देवता हैं। इस गांव का वास्तविक नाम अनन्धमंगलम था, लेकिन बाद में अनन्थमंगलम कहलाया जाने लगा था। इस प्रकार इस जगह के हनुमान देवता का सभी भक्तों के लिए एक विशेष महत्व है।

तिरुपति में प्रभु के दर्शन और उपासना से भक्तों के जीवन की परिस्थितियों में परिवर्तन आ जाता है, वैसे ही अनन्थमंगलम में प्रभु के दर्शन और प्रार्थना से भक्तों को प्रोत्साहन और आनन्द मिलता है।

 

 

अनुभव
प्रभु का आशीर्वाद सभी को जिन्होंने उपरोक्त विशेष वर्णित देवता सदृश पूजा रूप पढ़ा है।
प्रकाशन [जुलाई 2016]

 

 

~ सियावर रामचन्द्र की जय । पवनसुत हनुमान की जय । ~

॥ तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

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